आज सुबह जब हमारी आँख नींद में खुली,
हमारी भारी भरकम काया जब नींद मे हिली !
ऐसा लगा मानो रात्रि में कुछ घट गया हो,
हमारे शरीर का कोई हिस्सा ही कट गया हो !
बायॉ पैर अपने दर्द की कह रहा था कहानी ,
सूजन से भी याद आ रही थी घुटने को नानी !
कूल्हे व कंधे का था बहुत बुरा हाल,
दिमाग में उठ रहे थे ढेर सारे सवाल !
क्यूँ, कहाँ, और कब,
किस तरह हो गया ये सब !
तब मुझे याद आया कि कल रात,
मै कुछ ज्यादा ही पी आया !
इसी बेहोशी मेँ मच्छरदानी लगाना गया भूल,
बिजली तो पहले से ही हो रक्खी थी गुल !
इसी बात का मच्छरों ने जम कर फायदा उठाया,
और हमारे शरीर को न जाने कहाँ - कहाँ काट खाया !
तौबा करता हूँ की अब कभी भी नहीं पीऊँगा,
इन खूनी मच्छरों को पास न फटकने दूँगा !
बिजली रहे चाहे हो जाए गुल ,
मच्छरदानी लगाना कभी नहीं भूलूँगा !